मैथिली भाषा

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मैथिली
Maithili, 𑒧𑒻𑒟𑒱𑒪𑒲
Maithili.svg
Maithili in Tirhuta script.svg
बाजल जाइवाला  स्थान:भारत आ' नेपाल
प्रयोग क्षेत्र:भारतक उत्तरी बिहार, नेपालक तराई क्षेत्र
मातृभाषी:३५ मिलियन (लगभग ३.५ करोड़)
भाषा परिवार:
शाखा भाषा:
सोतीपुरा (केन्द्रीय)
पश्चिमी (बज्जिका)
छिका-छिकी (अंगिका)
देहाती
जोलाहा
किसान
दक्षिणी नेपाली
ठेठी
लिपिदेवनागरी
तिरहुता
आधिकारिक अवस्था
आधिकारिक भाषा
 भारत भारतक संविधानक आठम अनुसूची
 नेपाल अन्तरिम संविधान २००३ आ नेपालक संविधान २०१६
भाषा कोड:
आइएसओ ६३९-२mai
आइएसओ ६३९-३mai

मैथिली (/ˈmtɪli/;[१] Maithilī [ˈməi̯tʰɪli]) भारत-प्रशान्त-आंग्ल भाषा छी जे मुख्य रूपमे भारतक उत्तरी बिहार आ' नेपालक पूर्वी क्षेत्र सभमे बाजल जाइत अछि । ई प्राचीन भाषा भारतीय-प्रशान्त-आंग्ल भाषा परिवार अन्तर्गत अबैत अछि आ भाषाशास्त्रक हिसाबसँ बङ्गला, आसामी, उड़िया आ' नेपालीसँ एकर निकट सम्बन्ध अछि । अहि भाषाक अपन तिरहुता वा मिथिलाक्षर लिपि अछि, मुदा किछु दशक सं एकर प्रयोग न्यूनतर देखल जाइत अछि ।[२] हाल मैथिली भाषा देवनागरीमे लिखल जाइत अछि । [३] मैथिली भाषा भारतक संविधानक आठम अनुसूची आ' नेपालक संविधानक अनुसुची मे सेहो सम्मिलित कयल गेल अछि संगहि ई साहित्य- परिषद द्वारा सेहो मान्यता प्राप्त भाषा थीक ।

सन् २००२ मे मैथिली भाषा भारतक संविधानक आठम अनुसूची मे समावेश कयल गेल, जाहिसँ भाषा-शिक्षा, सरकारी निकाय आ' आन आधिकारिक प्रयोजनक लेल प्रयोग कयल जा' सकैत अछि।[४] सन् २०१५ मे मैथिली भाषाके नेपालक संविधान २०७२क भाग १, धारा ५ मे आधिकारिक भाषाक रूपमे राखल गेल छल ।[५] ई भारतक एकटा सभसँ पैघ भाषा सभक अन्तर्गत अबैत अछि, तहिना नेपालक ई दोसर सभसँ बेसी बाजल जायवाला भाषा थीक । [६] सन् २००१ धरि ई भाषा लगभग ४ करोड ४७ लाख लोकसभ द्वारा बाजल जाइत छल जाहि मे सँ नेपालमे मात्र २८ लाख आ भारत मे ३ करोड ४७ लाख लोक मातृभाषाक रुपमे अहि भाषाक प्रयोग करैत अछि ।[७]

भौगोलिक अवस्था[स्रोत सम्पादन करी]

नेपाल मे मैथिली तराईक जिलासभ धनुषा, सर्लाही, महोत्तरी, सिराहा, सप्तरी, सुनसरीमोरङमे बाजल जाइत अछि। ई भाषा विभिन्न जाति ओ समूहसभ मे कायस्थ, राजपुत, ब्राह्मण, धानुक, खत्वे, चमार, यादव आ' तेली आ' आन वर्ग द्वारा बाजल जाइत अछि ।[२] संविधान मे समावेश भेलाक उपरान्त मैथिलीक प्राथमिक शिक्षाक रूपमे विद्यालयसभमे प्रयोग कएल गेल अछि ।[६] भारतक साहित्य प्रतिष्ठानद्वारा मैथिली के साहित्यिक भाषाक स्थान पण्डित जवाहर लाल नेहरूक शासनकाल सँ प्राप्त अछि । भारत मे मैथिली बिहारक मधुबनी, दरभंगा, सुपौल, पूर्णिया, मधेपुरा, कटिहार, अररिया, किशनगंज सहरसा मुजफ्फरपुर, हाजीपुर समस्तीपुर क संगहि संग समीपवर्ती प्रमंडल सभ मे सेहो ध्वन्यात्मक फेर-बदलक संग विशद रूप मे बाजल जाइत अछि । मधुबनी आ' दरभंगा एकर विशुद्ध-मानक मानल जाइत अछि । मातृभाषीसभ भारतक आन क्षेत्र जेना किंवा न‌ई दिल्ली| , मुम्बई, पटनाकोलकाता मे सेहो अछि ।

इतिहास[स्रोत सम्पादन करी]

प्राचीन मैथिली भाषाक विकासक आरंभ प्राकृत आ' अपभ्रंशक विकास सँ जुड़ल अछि । मैथिलीक इतिहास १४हम शताब्दीसँ जुड़ल अछि । सन् १५०७ सँ संरक्षण क' राखल गेल वर्ण रत्नाकार नामक मैथिली गद्य मैथिली भाषाक सभसँ पुरान दस्तावेज मानल जाइत अछि जे मिथिलाक्षर लिपिमे लिखल अछि ।[८][९]

"मैथिली" नाम कऽ उत्पति प्राचीन मिथिला राज्य सँ आएल अछि जकर राजा जनक छल्थिन । राजा जनकक पुत्री आ' राजा रामक पत्नी सीताक मैथिली नामसँ सेहो मानल जाइत अछि । मिथिलाक विद्वान सभ अपन साहित्यिक काजक लेल संस्कृत भाषा आ' आम लोकगीत (अवहट्ट) कऽ लेल मैथिली भाषाक प्रयोग करैत छल ।

पाल वंशक पतनक बाद, बौद्ध धर्मक अनुपस्थिति मे कर्नाट राजक स्थापना भेल आ' कर्नाट वंशक हरसिंहदेव (१२२६-१३२४) मैथिलीक संरक्षक भेलाह । ओहि समय मे मैथिल कवि ज्योतिरीश्वर ठाकुर (१२८०-१३४०) एकटा पूर्ण मैथिली गद्य पाठ वर्णरत्नाकार लिखलन्हि, जकरा आधुनिक हिन्द-आर्यन भाषा परिवार अन्तर्गतक सभसँ प्रारम्भिक दस्तावेज मानल जाइत अछि ।[१०] सन् १३२४ मे, दिल्लीक सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक मिथिला राज्य पर आक्रमण क' हरिसिंहदेव के पराजित केलक आ' अपन पारिवारिक पुजारी ओइनवार वंशक मैथिल ब्राह्मण कामेश्वर झा के मिथिला राज्य सौंपि देलक । मुदा ओहि कालखण्ड मे मैथिली-साहित्यक रचनाक कोनहु विशिष्ट दृष्टिगोचर नहि भ' सकल । राजा शिव सिंह आ' हुनकर रानी लखिमा देवीक संरक्षणमे युग कवि विद्यापति (१३६०-१४५०) एक हजारसँ बेसी मैथिली अजर-अमर गीतक रचना केलन्हि । हुनका द्वारा सृजित कएल गीत सभ राधा आ' कृष्णक रासलीला, शिव आ' पार्वतीक लौकिक-जीवन आ' संगे-संग मोरङ मे रहि रहल आप्रवासी मजदूर ओ ओकरासभक परिवार पर आधारित छल । एकरा अतिरिक्त ओ विभिन्न सन्धिसभ संस्कृत भाषामे लीखने छलाह । विद्यापति द्वारा रचना' कएल गेल प्रेम-गीत सभ बहुत कम समय मे सम्भ्रान्त सन्त, कवि आ युवजन सभक हृदय जीतबा' मे सफल भेल छल । बङ्गालक वैष्णव सम्प्रदायक सन्त चैतन्य महाप्रभु अहि गीतसभक पाछां प्रेमक दिव्य प्रकाश देखि एकरा ओहि समुदायक आधारगीत बनौने छलाह । रवीन्द्रनाथ टैगोर उत्सुक भऽ ई गीतसभ अपन पदावली भानुसिंह ठाकुरेरमे अनुकरण केने छलाह ।[११][१२]आसाम, बङ्गाल आ उत्कलक धार्मिक साहित्य के अपन रचनासभ सँ विद्यापति बड्ड प्रभावित केने छलाह ।

मैथिली या तिरहुता सँ सम्बन्धित अति प्रारम्भिक सन्दर्भ सन् १७७१ मे प्रकाशित अल्फाबेटम ब्राहमनिकम नामक पुस्तकमे कएल गेल अछि ।[१३]सन् १८०१ मे कोलब्रुक्स ऐसे ओन द संस्कृत एन्ड प्राकृत लेङ्गवेज नामक पुस्तक मे मैथिली के अलग भाषाक रुपमे वर्णन कएल गेल अछि ।[१४]

१७हम शताब्दीक मध्य मे वैष्णव सन्त सभ, विद्यापति आ गोविन्ददास द्वारा बहुत रास मधुर गीतसभ लिखल गेल । रमापति उपाध्याय पारिजातहरण नामक नाटक मैथिली भाषामे लिखने छल । व्यवसायिक समूह मुख्यतया दलित सभ जकरा 'कीर्तनिया' सेहो कहल जाइत अछि अहि गीति-नाटक के गीतक रुपमे जनसमूहमे प्रस्तुत करबा' लेल आरम्भ केलक । लोचन (१५७५-१६६०) रगतरंगिनी लिखलक जहिमे सङ्गीत विज्ञानक महत्वपूर्ण ग्रन्थ, रागसभक वर्णन, ताल आ मिथिलामे प्रचलित गीत सङ्ग्रहित छल ।

१६ शताब्दी सँ १७ शताब्दीक मध्य मल्ल वंशक शासनकाल मे मैथिलीक पहुँच वृहत भेलाक संगे संपूर्ण नेपालमे पसरल छल ।[१५][१६]

विद्यापति मैथिली भाषाक आदिकवि आ' सर्वाधिक ज्ञात कवि छलाह । महाकवि विद्यापति मैथिलीक अतिरिक्त संस्कृत तथा अवहट्ट सेहो रचना केनए छलाह ।

ब्राह्मणेत्तर मैथिलीः विश्लेषण ओ संश्लेषण[स्रोत सम्पादन करी]

ब्राह्मणेत्तर मैथिलीक विश्लेषण आ' संश्लेषण एकटा भिन्न विषय थीक । अहि मे भाषा, साहित्य, संस्कृति, परम्परा, रीति-थिति, पहिरब-ओढ़ब सहित अनेक विषय समेटल जा' सकैत अछि । ई एकटा अध्ययन, अनुसन्धान आ' खोजक विषय सेहो अछिए आ' होयबाक चाही । एहि विषय कें जनबाक आ बुझबाक लेल मैथिली-भाषी क्षेत्र मे रग–रग पसरल ‘ब्राह्मणवाद’ आ ‘मनुवादी’ मानसिकताक जडि़कें सेहो खुनबाक या कमौनी करब सैहो बान्छनीय अछि । जेना खेत मे लागल फसिल कें कमेबाक आवश्यकता पड़ैत छैक, तहिना मैथिली भाषा मे करय पड़त । आब मात्र जमीन कें कमा' के वा तामि के कोड़ि-काड़ि के चौकी द' केँ बीया छीटला सँ काज नहि चलत । मैथिली भाषाक नाम पर खेती-बाड़ी करयवला सब आइ धरि ‘बाउग’ लगा'केँ सोझे अन्न उपजा' लैत रहल आ मैथिली माय घुसकुनिया कटैत रहली अछि । कतेक रास ‘वाद’के नाम पर जलकुम्भी सब मैथिलीभाषी क्षेत्रमे पसरि गेल अछि । ओकरा सबकेँ उखाड़ि फेक' लेल नव रीति सँ आगां बढबाक नितान्त जरुरी भए चुकल अछि । अहि आलेखमे उपरिलिखित दूइटा विषय पर प्रतिनिधिमूलक तथ्य सभक मात्र उल्लेख अछि । ब्राह्मणेत्तर समुदाय के कोन तरहे व्यवहार कयल जाइत अछि ? मैथिली मानकक नाम पर ब्राह्मणेत्तर कोना कें अलग–थलग पड़ि गेल अछि आ पड़ि रहल छैक, तकर ई आलेख एकटा उदाहरण मात्र भ' सकैत अछि । एतय ई कहि दी जे आलेख कोनो जाति, धर्म, सम्प्रदाय आ वर्गक गरिमा आ प्रतिष्ठाक आँच पहुँचय अहि उद्देश्य सँ कदापि नहि लिखल गेल अछि । विशुद्ध मैथिली भाषाक उत्थान आ' जागरण मे बरक्कति हो ताहि लेल अछि, एकरा मैथिली भाषा मे जारी शुद्धिकरण अभियानक एकटा अंशक रुप मे मानल जाए, एहेन विनम्र आग्रह ।

ब्राह्मणेत्तर, भाषा आ साहित्यः

सामान्य बूझबा' मे ब्राह्मण छोड़ि आन शांति केँ ब्राह्मणेत्तर कहल जाइत अछि । मैथिली भाषी क्षेत्र मे अहि शब्दक प्रयोग बहुत कम भेटैक छैक । मुदा मैथिली भाषा, संस्कृति, साहित्य सभ मे ब्राह्मणवाद प्रभावी भेलाक कारण किछु समय एम्हर एहि शब्दक प्रचलन विशेष रुप मे फेर सँ शुरु भ' गेल अछि । पहिने साहित्य केँ ब्राह्मण आ ब्राह्मणेत्तर रुपमे विभाजन कएल गेल तकर बाद किछु प्रकाशित सामग्री सभ मे भेटैत अछि । कोनहु भाषा मे साहित्य के महत्वपूर्ण अंग मानल गेल अछि । साहित्यक रीढ़ कहल जाइत अछि भाषा केँ । साहित्य साक्ष्य दू प्रकारक होइत अछि–धार्मिक साहित्य आ धर्मनिरपेक्ष (लौकिक) साहित्य । धार्मिक साहित्य केरि अन्तर्गत ब्राह्मण आ ब्राह्मणेत्तर ग्रंथ अबैत अछि । वेद, पुराण, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, स्मृति ग्रंथ इत्यादि ब्राह्मण साहित्यक अंतर्गत आ' जैन तथा बौद्ध रचना सब ब्राह्मणेत्तर साहित्य अन्तर्गत अबैत अछि (सत्य प्रकाश, सन् २०१८) । एहिमे कबीरदासक कबीरबाणी, रवि दासक साहित्य कें सेहो जोड़ि सकैत छी । मैथिली भाषी क्षेत्रमे ब्राह्मण साहित्यक प्रभाव बड़ बेसी भेटैत छैक । कृत्रिम पात्र ठाढ़ क' केँ ‘धार्मिक गुलाम’ बनबैयवला मिथक कथा सभ बहुत प्रचलन मे अछि । एहि मे सभ सँ बेसी ओझरायल ब्राह्मणेत्तर जाति-समुदाय भेटैत छैक । ब्राह्मणवादी मिथक सभक प्रभाव मे एतुक्का मूल निवासी वा ब्राह्मणेत्तर संस्कृतिवला लोक सभ अपन बृद्धिमान, उदार आ न्यायप्रिय राज केरि प्रतिमान बिसरि जाइत अछि, बिसरि गेल अछि ।

मैथिलीभाषी क्षेत्र मे ब्राह्मण सं बहार आन वर्णक लोक ब्राह्मणेत्तर मानल गेल अछि । तेँ ओ सब जे बजैत–भुकैत छथि, से ब्राह्मणेत्तर भाषा भेल आ ई भाषाक टोन ब्राह्मण सँ अलगे होइत छैक । एखनो धरि मैथिली मे ओहि टोनकेँ मान्यता कथित ‘मानक जातिक’ महाजन लोकनि नहि देने छथि । मुदा कहैत जरुर छथि जे ‘अहाँ जे बजैत छि, सेहो मैथिली थीक’ । ई नारा व्यवहार आ कार्यान्वयन मे शून्य देखल गेल अछि । ओहुना मैथिली भाषी क्षेत्र मे अतीत मे चारि वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आ शुद्र), पचपनियाँ, सोलकन, पिछडावर्गसहित विभाजित कएले गेल छल । आब ब्राह्मणेत्तर रुप मे भ' रहल अछि । एहन परिस्थिति आयब दुर्भाग्यपूर्ण थीक । एहन अवस्था किएक आएल अछि ? कि मैथिली ब्राह्मणेत्तर केँ नहि थीकै ? यदि छियैक त ओकरा सब केँ अहि भाषा सँ जोडबाक लेल प्रयत्न किएक नहि भेल आ' भए रहल अछि ?... एहेन बहुत रास प्रश्न आ' जिज्ञासा कतेको वर्ष सँ सार्वजनिक भ' रहल अछि । समाधान दिस किनको ध्यान किएक नहि जा रहल छन्हि ?

ब्राह्मण आ ब्राह्मणेत्तर भाषा-साहित्य-ग्रंथ दुनु फराक विषय थिक । ब्राह्मणेत्तर साहित्य सब मे, खास क'केँ मैथिलीभाषी क्षेत्र मे पसरल जकाँ विभिन्न ‘वाद’ वा जातिगत विभाजनक बात नहि भेटैत छैक । ब्राह्मणेत्तर साहित्य –बौद्ध ग्रन्थ त्रिपिटक, जैन ग्रंथ, जातक कथा सब अछि, एकर अध्ययन कएलाक बाद इयैह निष्कर्ष निकलैत छैक । अई साहित्य अन्तर्गत सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ त्रिपिटक अछि । ई सर्वाधिक प्राचीन बौद्ध ग्रन्थ सेहो अछि । त्रिपिटक तीन अछि–सुत्त पिटक, विनय पिटक, अभिधम्म पिटक । सुत्त पिटक मे बुद्धक धार्मिक विचार आ' वचन संग्रहीत अछि, एकरा बौद्ध धर्मक इनसाइक्लोपीडिया कहल जाएत अछि । विनय पिटक मे बौद्ध संघक नियम, अभिधम्म पिटक मे बौद्ध दर्शनक विवेचना आ' जातक मे बुद्धक पूर्व जन्मक काल्पनिक कथा सब भेटैत अछि । मैथिलीभाषी क्षेत्रमे ब्राह्मणेत्तर साहित्यक चर्च सेहो मुश्किलसँ होइत अछि ।

भाषाक प्रारम्भिक विकास मे ब्राह्मणेत्तर :

ब्राह्मणेत्तर शब्दक प्रयोग महात्मा गांधी सेहो कएने छथि । ओ कहने छथि, ‘दक्षिण भारत जतय ब्राह्मणक दृष्टिमे ब्राह्मणेत्तर मात्र अस्पृश्य मानल जाइत अछि, ओतहि तँ ब्राह्मणवादी द्वारा कएल गेल विभेदक विकृति पथ विकृतिपूर्ण देखल गेल अछि । ओकरा सभक पक्ष मे ठाढ़ होमयवला कोनो व्यक्ति नहि भेटैत अछि’ (महात्मा गांधी, १९५८) ।  किछु साहित्य प्रकाशन सब मेँ कबीरक वाणी कें ब्राह्मणेत्तर परम्पराक उपादानक निर्देशनक रुप मे सेहो प्रस्तुत कयने छैक (मधुमति, सन् १९८६) । मिथिलाभाषी क्षेत्रमे बुद्ध, कबीर, महावीरसहित कें ब्राह्मणेत्तर पर लिखल साहित्य नगण्य छैक, ताकलो पर भेटनाई मुश्किल अछि । सबसँ बेसी विद्यापति पर लिखल गेल अछि । भुसुक राउत जे ब्राह्मणेत्तर जातिकेँ प्रसिद्ध साहित्यकार छलाह, हुनका पर लिखल साहित्य–सिर्जना बड़ कम भेटैत छैक । जखन कि विद्वान लोकनिक मत छनि जे मैथिली भाषाक प्रारंभिक विकास ब्राह्मणेत्तर जाति सँ शुरु भेल अछि । बीएन मंडल विश्वविद्यालयके अंग्रेजी विभागक पूर्व संकायाध्यक्ष डा. ललितेश मिश्र एहि बातक रहस्योघाटन करैत कहैत छथि, ‘मैथिली भाषाकें प्रारम्भिक विकास ब्राह्मणेत्तर जातिक प्रसिद्ध साहित्यकार भुसुक राउत, डाक आदिक जरिए भेल रहैक (जागरण डट कम, २०१७) ।

मैथिली भाषा मे ब्राह्मणेत्तर जातिक योगदानक चर्चा एकटा विद्वान-समालोचक मोहन भारद्वाज सेहो खुलि के केने छथि । ओ तं मैथिली भाषाक उत्पतिक श्रेय ब्राह्मणेत्तरकेँ दैत छथि । ओ लिखैत छथि– ‘स्पष्ट अछि जे मैथिली मिथिलाक भाषा अछि । मिथिलाक मूल निवासी द्रविड़ आ जनजातीय लोक सभ छलाह । ओ सभ मुण्डारी परिवारक भाषा (कोल भाषा) बजैत रहथि । कालान्तर मेओकर स्वतंत्र नामाकरण भेल । आई ओकरा मैथिली कहल जाइत छैक ।....मुंडा–परिवारक अनेक जनजातीय भाषा सँ ल’ क’ संस्कृत आ हिन्दी धरिक अगणित शब्द मैथिलीक शब्द–भंडारमे अछि । मुदा, मैथिलीक जे व्याकरण–पोथी अछि ताहि मे अधिकांश एहने अछि जाहि मे मैथिली समाजक भाषिक विविधता केँ नकारल गेल अछि । लेखक भाषाकेँ समाजक सामूहिक देन नहि मानैत वर्गीय आ जातीय भावना सँ परिचालित भेलाह अछि । सामन्ती आ जातीय आँखि सँ भाषा के देखलनि अछि । वाचित भाषा कें नकारि देलक अछि, जे मैथिली भाषाक जीवन्तता आ जिजीविषाक प्रमाण अछि । मैथिलीक मूल स्वभाव आ शक्ति के अन्ठा क’ दुत्कारि क’ मिथिलाक सम्भ्रान्त वर्ग मानक मैथिलीक परिकल्पना कयने छथि (डाक–दृष्टि, २०१२) ।

मानकीरणक नाम पर विभेद:

ब्राह्मणेत्तर मैथिलीभाषी आमजनक बोली, लय, शैली केँ कथित ‘मानक जातिक’ लोक सभ मैथिली मानिते नहि छथि । तेँ मैथिलीक वर्षौ सँ दूर्भाग्यपूर्ण नियति भोगि रहल अछि । शुद्ध आ' विशुद्ध या अशुद्ध केँ विवाद जाधरि मैथिलीभाषा मेँ रहत एकर उन्नयन आ विकास असंभव अछि । छुइत, अछुइत, अछोप... बला बात मैथिलीभाषी बहुत झेललक/खेपलक अछि । आब ‘हम आ ओ’ बला बात मैथिली मे दुर्भाग्यपूर्ण अछि । भाषाविद् डा.रामअवतार यादव कहैत छथि– ‘मानक मैथिलीक प्रचलनक आधार भाषावैज्ञानिक नहि भ’ समाजिक आ' भाषावैज्ञानिकेतर अछि । जाति, शिक्षा, पारिवारिक वा सामाजिक पृष्ठभूमि, सामाजिक मनोवृत्ति आदि सन भाषावैज्ञानिकेत्तर कारक तत्वक पृष्ठभूमि मे आहि मानक मैथिलीक आधारशिला स्थापित भेल अछि ओ खास क’ ब्राह्मण आ (कर्ण) कायस्थ जाति द्वारा अपना–अपना बोलीकेँ उत्तम, स्तरीय ओ विशुद्ध मैथिली बुझि अभिमान करब एहि मानक मैथिलीक विशेषता मानल जाइत अछि । मिथिलाक ब्राह्मण ओ कायस्थ एक प्रकारक कृत्रिम ‘हम–ओ’ भिन्नताक सृजन क’प्रचण्ड रुपेँ एहि कुत्सित भावनासँ ग्रस्त छथि’ (मैथिलीक भाषिक वैविध्य ः औपभाषिक ओ मानक स्वरुप, १९९९) । डा. यादव मैथिलीक मानकक निर्धारण भाषावैज्ञानिक द्वारा होमय, से कहैत छथि । मुदा आब कमला-कोसी-बागमती मे बहुत जल प्रवाहित भए चुकल अछि , पानि बहि गेल अछि, तेँ भाषाक मानक जन–जन केँ बोली, शैली, लय, तर्ज सहित कें आधार पर होयबाक चाही । लोक सब आब एहेन मैथिली भाषाक प्रतीक्षा मे छथि, जाहि मे ओकरा सबहक अपन बोली समावेश होमय, ओ सब सेहो अपनत्व भावनाक संग पढ़ि आ लिखि सकय, नेपाली भाषा जँका ओकरा सबहक अपने मातृभाषा दोसर भाषाक रुपमेँ नहि बनैक....।

आम मैथिलीजन केँ मैथिलीभाषाक प्रति त्रास आ भय केँ अंग्रेजी विद्वान पोल आर ब्रास सेहो पुष्टि करैत लिखैत छथि– ‘मैथिलीभाषी समाजक भाषिक दुगोलाक चलते मैथिली भाषाक विकास आन भाषाक तुलना मे मंथर गति सँ भेल अछि । छात्रलोकनि मैथिली पढ़वामे एहि लेल हिचकिचाइत छथि जे ओ जाहि वर्तनी मे लिखताह ताहि सँ भिन्न वर्तनी केँ मानयवला यदि परीक्षक भ’गेलथिन त’ हुनक अंक कटि जयतनि ’(ल्याङ्गवेज, रीलीजन एण्ड पोलिटिक्स इन नोर्थ इण्डिया, १९७४) । ब्राह्मणेत्तर लोकनिकेँ अहि ड'र वा त्रासक निर्वारणकर्ता कें खोजि मैथिलीभाषी क्षेत्र मे कतेको दशक पहिनेसँ भए रहल अछि । अहि विषय पर कियो दादा कहबैक लेल निकलु ? हाँ, अहिकेँ लेल ‘अश्व शक्ति’ बढ़ेनाय परम आवश्यक सेहो अछिए । अहि शक्ति प्राप्तिक लेल मैथिली पत्रकारिताके अस्त्रकेँ रुपमे प्रयोग करबाक सुझाव नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानसँ प्रकाशित आङन पक्रिका मे देल गेल अछि । पत्रिका अनुसार, विभिन्न भाषा केरि अपन–अपन महत्व आ पहिचान होइत अछि । मैथिली भाषा ओहि मे सम्भवतः सब सँ उपर आ आगाँ अछि । एकर विरासत आ' इतिहास आन कोनो भाषा सँ बेसी गरिमामय अछि । परञ्च मैथिली मात्र डेगा-डेगी बढ़ि रहल अछि । अहि भाषाक उत्थानक सरोकारवला सभ के ‘अश्व शक्ति’ बढ़ेनाई आवश्यक अछि । अहि शक्तिक प्राप्तिक लेल मैथिली पत्रकारिता के एकटा अस्त्रक रुपमे प्रयोग कएल जा सकैत अछि (आङ्न,४०ः२०७५) ।

मैथिली भाषा मे ब्राह्मणेत्तर मैथिली भाषी के महत्वपूर्ण योगदान छलैक, अछि आ' रहत । डाकवचन एकर एकटा साक्षात प्रमाण थीक । मैथिली साहित्यक प्रारम्भ डाकवचन सँ भेल अछि । ओना, इतिहासकार लोकनि ज्योतिरीश्वरकृत वर्ण रत्नाकर सँ अहि सत्यक विवेचन–विश्लेषण शुरु करैत छथि, मुदा से उचित नहि । एहि सँ इतिहासकार सभक दृष्टि–सीमा तथा सामर्थ्यहीनता तँ देखार होइते अछि, मैथिली भाषा–साहित्यक कतेक अहित भेल अछि सेहो ध्यान देबाक विषय थीक । असल मे मौखिक साहित्य के साहित्य नहि कहब, ओकर शोध–अनुसन्धान नहि करब जाहि मानसिकताक देन अछि तकर परिणाम ओहि साहित्यक इतिहासे टा नहि, सम्पूर्ण मिथिला–मैथिली भोगि रहल अछि (डाक–दृष्टि) । बहुत रास विद्वान लोकनि डाकवचन के लोकसाहित्यक उपमा दैत छथि । खास क'के उदारवादी मैथिली साहित्यकार तं अहि दिस अपन कलम चलबैइते आबि रहल अछि । डाकवचन लोकसाहित्य, मौखिक साहित्य आ लोककथन अछि((ऐऐ) । डाकवचन एकटा मौखिक साहित्य अछि , एकरा कतेको सय वर्ष धरि एकर वाचिकेँ रुप प्रचलित रहल बात दूर्भाग्यपूर्ण अछि । बाह्मणेत्तर साहित्य भेलाक कारण डाकबचनक अहि अवस्था सँ गुज्ररय पडल । ओना आब तं लिखित रुप सेहो उपलब्ध भ' रहल अछि । मुदा मौखिक साहित्य के साहित्यक कोटि मे नहि रखनिहार लेखक सभ एकरा साहित्य मानय लेल तैयार एखनो नहि अछि ।

अपभ्रंश शब्द आ गलत प्रचारः

लोक शब्दक अर्थ अछि, ‘लोक समाजक ओ वर्ग थीक जे आभिजात्य संस्कार, शास्त्रीयता आ' पाण्डित्यक चेतना एवं अहंकार सँ मुक्त रहैत एकटा परम्पराक प्रवाह मे जीबैत अछि (हिन्दी साहित्यकोश, १९८५) । लोक भाषा, संस्कृति आ साहित्यक प्रतिनिधित्व आ बचाब मे ब्राह्मणेत्तर वर्गक योगदान अतुलनीय अछि । मुदा मैथिली साहित्य मे ब्राह्मणवादी द्वारा ब्राह्मणेत्तर सभ कें वर्षौंधरि अस्पृश्यक श्रेणी मे राखल गेल अछि । एकरा स्पष्ट रुप सँ कहल जाए तं  मैथिली भाषा, साहित्य आ संस्कृति पर ब्राह्मणवाद हावी अछि । तेँ मैथिली भाषा कतोक वर्ष सँ पाछां अछि । कण्ठानुकण्ठ विकसित होमयवला काव्य–वाणी सँ भरल–पूरल अछि ब्राह्मणेत्तर मैथिली मुदा एकर लिखित रुप नहि भेला सँ ब्राह्मणवादी साहित्य मैथिलीभाषी क्षेत्रमे लोकगीतक रुपमे प्रचार कयल गेल अछि । एकटा उदाहरणक रुप मे ग्राम्य लोक–आस्थाक केन्द्र रहल ‘डिहबार बाबा’क महिमा गीत ‘ब्राह्मण बाबू यौ, कनियो कनियो होइयौ न सहाय....’ के लेल जा सकैत अछि । अहि गीतक व्याख्या करैत पत्रकार श्यामसुन्दर यादव ‘पथिक’ लिखैत छथि, ‘ गीतमे ब्राह्मण कहि डिहबार के सम्बोधन कएल गेल अछि । आपत–विपत वा समस्या पडलाक अवस्थामे ब्राह्मण अर्थात राजाजी डिहबार केँ सहारा बनबाक लेल स्तुति कएल जाएत अछि ’ (आङन, २०७५, पृ.९४) । प्रायः मैथिली भाषी क्षेत्रमे ‘बरहम बाबा’क रुप मे सेहो संवोधन होइत आबि रहल ‘डिहबार बाबा’ गाम सँ बाहरे भेटैत अछि । एकरा सर्वजातीय लोकप्रिय लोकदेवता मानल जाएत अछि । ब्रह्मासँ ‘बहरम’ आ बादमे ‘ब्राह्मण’ बनि गेल होयत, निराकार ब्रह्मा साकार आ सद्गुण बरहमक रुपमे मिथिलाञ्चल मे पूजित आ सम्मानित अछि (मैथिली संस्कृति, २०५६) । बहरम सँ बराहमन बनाओल गेल आ ओकरा गीतक रुपक्षमे प्रचार कयल गेल बुझबा'मे किनको कोनो दिक्कत होयत से नहि बुझायत अछि । बरहम बाबा या डिहबार बाबा थानतर गबैवला किछु गीत सब अछि– ‘हाथ चलैत बिहुसैल छतिया ओ बराहमन बाबु, हाथ दुनु कमलक पटल ओ बराहमन बाबु...,’ ‘करिया मेघ चढि बैसल हो बराहमन सुगवा जकाँ मडरावैं......,’ ‘बरहामन बाबुक आङना चनन घन गछिया...,’ ‘मुखले जे खयलक हो बरहामन अछतक धनमा...,’ ‘तीन रंग घोड़वा बरहामन सबुजे रंग बछेबा,’ ‘बराहामन बाबु भेल असबार....,’ ‘बेरी वरजौ मालिक बेरी आ ओही बाटे जयता बरहामन बाबु...’ (ऐऐ) सहितक बहुत लोकगीत मे उल्लेख कयल गेल निराकार डिहबार (बरहम)क लेल प्रयोग भेल शब्द कोनाकेँ अपभ्रंश भए ‘बराहमन(ब्राह्मण)’ बना' देल गेल अछि । अहि गीत सभहक व्याख्याक पुष्टि तखन होयत अछि जखन बरहम बाबाक अर्ध्य देबाक समय गाबैवला गीतमेँ लाल जनेउक प्रसंग अबैत अछि । ई गीत देखल जाए –

‘.........छोट बगिया लगायब, ओतअ फुलवा लोढाएव रोज दिन,

लाल जनेउ मङ्गायब, करिया छागर धुर बाहयब ।

(मैथिली संस्कृति,पृ.१३१)

‘....पानबिनु मुहमा मलिन भेल,

जनेउ बिन सुखल शरीर......।’

‘...भइया मोरा काटतै बरहामण टकुरी सँ मुनरिया,

बहिनी मोरा खेहैत रे जनेउ आ,

धनी मोरा रंगतै बरहामन पाटे सुत जनेउआ ।’

(मैथिली संस्कृति,पृ.१३२)

बरहम वा डिहबार बाबा सूर्य आ निरञजनकेँ प्रतीककेँ रुपमे सूर्यक स्वरुप आ संस्कारसँ मण्डित अछि । ओ निराकार अछि । मिथिला क्षेत्रमे कतौह बरहम बाबा त कतौह डिहबार बाबाकेँ रुपमे गामक तमाम लोकक आस्थाक केन्द्र अछि । सम्भवत :डिहबार थान मे माटिक पिढी मात्र भेटत । हाँ मिथिलाक पारम्परिक लोकमूर्तिकला मे घोडा पर चढल बरहम बाबाक माटिक मुरुत जरुर भेटैत अछि । जहि मे कोमल कान्त मुखाकृति, माथ पर पगड़ी, सेरवानी धोती आ चमड़ाक जुत्ता लगाओल मुरुत शिल्पी जाति कुम्हार समुदायक द्वारा बनाओल जाएत अछि । मिथिलाक विभिन्न मांगलिक कार्य मे डिहबार स्थान पर चढ़ाओल जाएत अछि (ऐऐ) ।

ब्राह्मणेत्तर समुदायक मैथिली संस्कृति के बचयबा मे महत्वपूर्ण योगदान सबदिन सँ अछि । मुदा ओ मिथिलामे सदति पाछां रहल अछि । धर्मक नाम पर दास बनाओल गेल अछि । आब भाषाक नाम पर दास बनाओल जा रहल अछि । पाणिनि व्याकरणक चर्चा मैथिली भाषाक लेल  करैवला सब ब्राह्मणेत्तर कें भाषिक लय, शैली, बोली, कण्ठोच्चारण के बाईपास करैत आबि रहल अछि । ई ब्राह्मणेत्तर समुदायक मैथिली मातृभाषा के दोसर भाषाक रुपमे प्रस्तुत करबाक प्रपंच मात्र अछि । सावधानी आ संचेतना जरुरी अछि । ब्राह्मणेत्तर नहि शुद्ध नेपाली लिखय सकत आ नहि मैथिली बाज' आ लिख' सकत तं ओकरा सबहक भाषिक अधिकारक एकटा उल्लंघन नहि भेल कि ?

लेखनी मे जातिक प्रभाव रहितै छैक, मुद्दा एकर अर्थ ई किन्नहु नहि जे ओकरा अपन स्तुतिगान मे प्रयोग कएल जाय । शब्दक अपभ्रंस कयल जयबाक एकटा आर उदारहण देखियौ : मैथिली मे जे डाकवचनक संकलन–संपादन भेल अछि तकर अवस्था व्यक्ति पाछु फरक भेटैत छैक । डाकवचनक वनस्पति प्रकरणमे केरा रोपबाक प्रसंग आयल अछि । विद्वान कपिलेश्वर झा आ' जीवानन्द ठाकुरक संकलन मे ओकर प्रारम्भिक दूइ पाँती एहि प्रकार अछि–

कहए डाक तों सुनह रावन, केरा रोपी अखाढ सावन ।

तीन सय साठि जे केरा रोपए, आबि निचिन्त घरहि भए सुतए ।।(पृ.६७)

शशिनाथ झाक संग्रह मे ई पाठ अछि–

कहय डाक तों सुनह बाभन, केरा रोपी असाढ सावन ।

तीन सय साठि जे केरा रोपए, आबि निचिन्त घरहि भए सुतए ।।(पृ.३८)

ई उपर देल गेल दूटा फरक संग्रह केँ मोहन भारद्वाजक ‘डाक–दृष्टि’ मे सुन्दर व्याख्या कएल गेल अछि । ओ लिखैत छथि–

ध्यान देबाक अछि जे शशिनाथ झाक पाठमे ‘रावन’ बदला ‘बाभन’ शब्द अछि । किएक ? ओ प्रायः मानैत छथि जे रावन राजा रहय, ओकरा केरा रोपबाक लेल कहब उचित नहि । तेँ शशिनाथ झा रावन केँ नहि, बाभन केँ सम्बोधित करैत छथि । मुदा, वास्तविकता से नहि अछि । वामन शिवराम आप्टे संस्कृत–हिन्दी कोश मे रावण शब्दक अर्थ लिखने छथि– क्रन्दन करयवला, चीत्कार करयवला । माने ई जे डाकक पद मे रावनक अर्थ अछि गरीब–गुरबा, दीन–हीन । उक्त पद एहने असहाय लोक केँ संबोधित अछि । एहिठाम रावण शब्दक प्रयोय अत्यन्त सटीक आ सार्थक अछि । तखन शशिनाथ झाक पाठान्तरक प्रसंग की कहल जाय ?(ऐ.ऐ)

डाकवचनक रचना शुरु भेल दशम शताब्दी मे । मौखिक स्तर पर । कालक्रमे पदक संख्या बढैत गेल । कपिलेश्वर झा(१९२४ ई) डाकबचनक के पहिल संकलक छथि । ई संग्रह लोककण्ठसँ कयल गेल छल, तेँ एहिमे संस्कृतसँ अनुदित वा प्रभावित रचना कम अछि । भाषा तथा लेखन–शैली सेहो लोकमानसक अनुकूल अछि(ऐ.ऐ.) । मुदा प्रचलित समयमे ब्राह्मणेत्तर लोकनिक मौखिक सामग्री सभ बड़ कम भेटत, जे भेटल चिकनाय आ पोलिस कयल भेटत । ओ लोकमानसक आ ग्राम्य बासिन्दाक अनुकूल कम आ बजारमे रहैयवला मैथिली भाषाक दोकानदारी मे लागल लोक सबहक घाटा-नफा केरि गणित मे ओझरायल बेसी भेटत ।

नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान, काठमाण्डू सँ प्रकाशित बहुभाषिक अर्धवार्षिक पत्रिका सयपत्री मे ‘मैथिली भाषा आ साहित्य:समस्या आ' समाधान’ शीर्षक आलेख मे लिखल अछि, ‘ चौदहम शताब्दीक महान ग्रंथ ज्योतिरीश्वरक ‘वर्णरत्नाकर’ मे आन नाच आ लोक बाजा सभक चर्च कएल गेल अछि, परन्च ‘सलहेस नाच’ आ ‘ओरनी’ के चर्च नहि अछि(लोकनायक सलहेस, २०७०) । बहुत रास इतिहासविद मत छन्हि जे सलहेसक काल ओहु सँ पहिने शुरु भेल रहैक आ' सलहेस नाच ओहि समय प्रचलन मे आयल होयत । इतिहासविद मणिपद्म पाँचम् वा छठम् शताब्दी मे सलहेसक जन्म होयबाक बात लिखने छथि । ओना तं अहि विषय पर मतैक्य नहि अछि । तईयो बहुमत विद्वानक मत कें जं मानल जाय तं ज्योतिरीश्वर सँ बहुत पहिने  सलहेसक जन्म भेल रहय अहि निस्कर्ष पर पहुंचल जा सकैत अछि । अर्थात, ‘दलित’ होयबाक कारण हुनका ओहि समयमेँ अपन साहित्य रचना मे उल्लेख करब मुनासिब नहि मानल गेल होए ?(सयपत्री, २०७५) ।

पदासिन लोकनिके भूमिका :

मैथिलीमे ब्राह्मणेत्तर लोकनिक अपन–अपन भाषा, शैलीमे सिखबाक–बुझबाक, लिखबाक आज्ञा नहि छैक । कथित ‘मानक जाति’ वला सभ ओकरा सबहक भाषाक मान्यता मैथिलीक रुपमे नहि दैत छथि । एकर पैघ उदाहरण सरकारी संचार माध्यम, छापा वा प्रकाशन मे कार्यरत समाचार वाचक, लेखक आ सम्प्रेषक तथा भाषा-सम्पादक आ सरकारी पाठ्य-पुस्तक लेखन मे ब्राह्मणेत्तर जाति कें न्यायोचित स्थान नहि गेल जयबाक तथ्य केन लेल जा' सकैत अछि । डिबिया जारि के ताकब तइयो नहि भेटत । हाँ, कतहु भेटियो जेताह त ओ ‘मुर्ति जकां ठाढ़’ भेटताह । ओ कोनो दोकानक ‘शो-पीस’ मोडलक भूमिका मे मात्र भेटत । पद आ कुर्सीक लेल अपन मान, प्रतिष्ठा आ इज्जत दांव पर लगेबाक लेल आतुर भेटत । तेँ बहुजन लोकनि मैथिली भाषाक प्रति उखड़ल स्वभावक बेसी भेटैत छथि । मिथिलामे बुद्ध के निस्तेज कयल गेल जयबाक बात आब पुरान भँ गेल । मुदा कोनहु भाषा कें समृद्ध आ' सर्वमान्य बनेबाक लेल हुनक ई तथ्यगत बात विचारणीय विन्दू भ' सकैत अछि– ‘बुद्ध ब्राह्मण नहि, ब्राह्मण विचारधाराक विरोधी छलाह । संस्कृत भाषा नहि, धर्माचार मे संस्कृतक महत्व हुनका अखरैत रहनि । तेँ ओ कोनो एकटा भाषाकेँ नहि, जनपदीय सभ भाषाकेँ समान मानलनि । एक बेर हुनक दू शिष्य हुनका सँ अनुरोध कयलथिन जे अपन धर्मोपदेशक भाषा केँ वैदिक भाषा मे निबद्ध करबाक अनुज्ञा देल जाए । एहि पर बुद्ध कहलथिन–भिक्षुगण, हम अपन वचनकेँ प्रत्येक व्यक्तिक अपन–अपन भाषा, शैली मे सिखबाक–बुझबाक, लिखबाक आज्ञा दैत छी ’ (सयपत्री :१०६ः२०७५/डाक–दृष्टिः६०–६१ः२०१२ई) । कथित ‘मानक जातिक’ लोक सभ अहि बातकेँ कोना बुझत,  जं ज्योतिरीश्वर जएहेन पण्डित नहि बुझिलथि । ओ अपन ‘सरोवरवर्णना’ मे लिखने छथि –बौद्धपक्ष अइसन आपात भीषण । तब कहूँ ब्राह्मणेत्तर बुद्ध मैथिली भाषी क्षेत्र मे कोना के टीकत ? संसार भरि बुद्ध के कतेको लाख अनुयायी भेटत मुदा मैथिली भाषी क्षेत्र मे बहुत कम्मे, किएक ? ब्राह्मणेत्तरक प्रतिनिधित्व करयवला ग्रन्थ-साहित्यक रचयिता बुद्ध आ जैन सनक अहिंसाक पुजारी मैथिली भाषी क्षेत्र मे बहिष्कार भेल रहैक । मैथिली भाषाक शुद्धिकरण मे लागैयबला लोक ‘कोन वृक्ष के पात’ छथि । अनर्गल प्रचार केरि बदनामी करैत ओकर वहिष्कारक प्रपंच होइत छैख, होयबे करत । ऐहन प्रपंच कएनिहार पाखण्डी आ मक्कार लोकसँ मैथिली के बचेबाक लेल आवश्यक अछि ।   

अन्त्यमे,[स्रोत सम्पादन करी]

‘संस्कृति’ शब्द ‘कृति’कँे आगा ‘सम्’ उपसर्ग लगेलाक बाद बनैत अछि । ‘संस्कृति’केँ अभिप्राय अछि, जकरा बनेबयमे आ आगा बढबयमे समाज’क सब वर्ग’क योगदान बराबर होय, जहिमे सबकँे समान सहभागिता होय, ओकरा लेल आवश्यक अछि जे समाजमे सब कियो बराबर होय आ प्रत्येककँे अपना पक्ष प्रस्तुत कएबाक लेल पूर्ण स्वतंत्रता होए । व्यक्तिकँे चारित्रिक विविधता सबकँे सम्मान करैत संस्कृति सदस्य इकाई सबकँे मन, विचार, रीति–रिवाजकँे सामंजस्यीकरणकँे काम करैत अछि, ताकि आगंतुक पीढि सब समाज’क आदर्श, रीति–रिवाज तथा ज्ञानानुभाव सबस“ लाभ उठा सकैह । मिथिला क्षेत्रमें पसरल विकृति आ विसंगिक हटेबाक हेतू संकटमोचककेँ आभावक कारण मैथिली अपन मूल बाट सँ भटैक गेल । सबगोटाके एक साथ लकेँ आगा बढबाक अनिवार्यता अछि ।


सन्दर्भ सामग्री :

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सम्बन्धित पृष्ठ[स्रोत सम्पादन करी]

सन्दर्भ सूची[स्रोत सम्पादन करी]

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बाह्य जडीसभ[स्रोत सम्पादन करी]

एहो सभ देखी[स्रोत सम्पादन करी]